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Bihar Politics: NDA से बगावत की राह पर चिराग पासवान! ‘किंगमेकर’ नहीं बल्कि ‘किंग’ बनने की चाह में LJP प्रमुख

Published
4 सप्ताह agoon
By
News Desk
Bihar Politics: जैसे ही चुनाव आयुक्त विवेक जोशी बिहार की राजधानी पटना पहुंचे, राज्य की सियासी सरगर्मी एक बार फिर तेज हो गई। इस बीच केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने राजनीतिक रणनीति का नया संकेत दिया है। पार्टी ने घोषणा की है कि वह एनडीए में रहते हुए भी विभिन्न जिलों में ‘बहुजन भीम संवाद’ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करेगी।

चिराग पासवान ने 2020 के विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने का फैसला कर नीतीश कुमार को सीधी चुनौती दी थी, हालांकि उन्होंने खुद को नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ बताते हुए भाजपा से नजदीकी बनाए रखी थी। इस कदम ने जेडीयू को भारी नुकसान पहुंचाया और भाजपा को मजबूती। अब सवाल यह उठता है कि क्या चिराग 2025 में भी ऐसा ही कोई दांव खेलने जा रहे हैं? (Bihar Politics) आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि क्या चिराग पासवान एक बार फिर NDA के साथ रहेंगे या वे पिछली बार की तरह ‘बी-टीम’ की भूमिका निभाते हुए कोई अलग चाल चलेंगे?
Bihar Politics: एनडीए में जगह या बाहर से समर्थन?
हाल ही में लोजपा (रामविलास) को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिलना यह संकेत देता है कि एनडीए के साथ रिश्ते सुधर रहे हैं। (Bihar Politics) लेकिन बिहार में सीट बंटवारे और स्थानीय समीकरणों के हिसाब से चिराग की अगली चाल अहम होगी। खासकर तब जब भाजपा और जेडीयू के बीच पुराना तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान की रणनीति दोहरी हो सकती है। केंद्र में भाजपा के साथ तालमेल और राज्य में स्वतंत्र पहचान बनाए रखने की कोशिश। इससे उन्हें पासवान वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने में मदद मिलती है और साथ ही सत्ता के केंद्र के करीब भी बने रहते हैं।
क्या चिराग फिर से ‘स्लीपर एजेंट’?
2020 में चिराग की भूमिका को विपक्ष और जेडीयू ने ‘भाजपा के स्लीपर एजेंट’ के तौर पर देखा था। अगर वह इस बार फिर से अलग रास्ता अपनाते हैं लेकिन भाजपा के खिलाफ खुलकर नहीं बोलते, तो यह अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि वह फिर से किसी रणनीतिक ‘सैटिंग’ का हिस्सा हो सकते हैं।
भविष्य की राजनीति तय करेंगे गठबंधन के समीकरण
फिलहाल चिराग पासवान ने साफ तौर पर कोई रुख नहीं अपनाया है, लेकिन उनके बयान और राजनीतिक गतिविधियाँ यह इशारा कर रही हैं कि वह हर विकल्प खुले रखकर चल रहे हैं। बिहार की राजनीति में वह ‘किंगमेकर’ नहीं, तो कम से कम ‘डिसरप्टर’ की भूमिका तो जरूर निभा सकते हैं। लेकिन ऐसा लगता है वह खुद किंग बनने की चाह रख रहे हैं।
आने वाले महीनों में चिराग पासवान का रुख यह तय करेगा कि वह एनडीए के साथ स्थायी साझेदार बनेंगे या फिर रणनीतिक सहयोगी। एक बात तय है बिहार का अगला चुनाव बिना चिराग के खेल के अधूरा रहेगा।
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