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Farmer’s Protest: आखिर यह तय कैसे होता है और इससे किसानों को कितना फायदा होगा?

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Farmer’s Protest: दो साल पहले, भारत सरकार ने तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेकर किसानों का धरना प्रदर्शन खत्म करा दिया था। लेकिन, किसानों की एक सबसे अहम मांग ‘फसलों पर MSP की गारंटी’ अभी भी पूरी नहीं हुई है। (Farmer’s Protest) इस कारण तमाम किसान संगठनों ने एक बार फिर सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है।

हजारों की तादाद में यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान दिल्ली बॉर्डर पर पहुंच गए हैं। किसानों का आरोप है कि सरकार ने दो साल पहले किए अपने वादों को पूरा नहीं किया। सबसे अहम एमएसपी पर कानून नहीं बनाया।

Farmer’s Protest: क्या है एमएसपी?

एमएसपी या न्यूनतम समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है। यह मूल्य कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा विभिन्न कारकों पर विचार करके तय किया जाता है।

स्वामीनाथन फॉर्मूला क्या है?

स्वामीनाथन फॉर्मूला एमएसपी तय करने का एक तरीका है जो उत्पादन लागत का 1.5 गुना मूल्य देने की सिफारिश करता है। (Farmer’s Protest) यह फॉर्मूला 2006 में राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था।

किसानों के लिए एमएसपी क्यों अहम है?

एमएसपी किसानों को उनकी फसल के लिए एक न्यूनतम गारंटीकृत मूल्य प्रदान करता है। यह उन्हें बाजार में उतार-चढ़ाव से बचाता है और उन्हें अपनी लागत वसूल करने में मदद करता है।

सरकार का क्या कहना है?

सरकार का कहना है कि वह एमएसपी को लेकर किसानों की चिंताओं को समझती है। सरकार ने एमएसपी पर कानून बनाने का वादा किया है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

जब एमएसपी तय है तो किसानों को किस बात का है डर?

किसानों को डर है कि सरकार एमएसपी को कम कर सकती है या इसे पूरी तरह से खत्म कर सकती है। उन्हें यह भी डर है कि सरकार एमएसपी पर आधारित खरीद प्रणाली को कमजोर कर सकती है।

एमएसपी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा जाल है। सरकार को एमएसपी पर कानून बनाकर इसे मजबूत करना चाहिए। साथ ही, सरकार को किसानों की आय बढ़ाने के लिए अन्य उपाय भी करने चाहिए।

MSP की गारंटी क्यों नहीं दे रही सरकार?

एमएसपी हमेशा फसल की एक ‘फेयर एवरेज क्वालिटी’ के लिए दिया जाता है. यानी कि जब फसल की अच्छी क्वालिटी होगी तभी उसकी एमएसपी पर खरीद की जाएगी अन्यथा नहीं. ऐसे में अगर सरकार ने एमएसपी पर गारंटी दे दी तो उस फसल की क्वालिटी अच्छी है या नहीं ये कैसे तय किया जाएगा और अगर फसल तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा. दूसरा अन्य फसलों को एमएसपी में शामिल करने से पहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा.

सरकार को कई समितियों ने सुझाव दिया है कि गेंहू और धान की खरीद कम करनी चाहिए. भारत सरकार इस सुझाव पर काम भी कर रही है. अब यही डर किसानों को सता रहा है कि सरकार अगर कम खरीद करेगी तो उन्हें मजबूरी में निजी कंपनियों और बिचौलियों को फसल बेचनी पड़ेगी. ऐसे में उन्हें कम कीमत मिलेगी और उन्हें नुकसान होगा.

क्या है स्वामीनाथन रिपोर्ट

मोदी सरकार ने हाल ही में दिवंगत कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया. उन्हें भारत में ‘हरित क्रांति’ का जनक माना जाता है. 2004 में उनकी अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग (NCF) का गठन किया गया था.

आयोग ने 2006 तक पांच रिपोर्टें पेश कीं, जिनमें भारत में एग्रीकल्चर सिस्टम सुधारने के सुझाए दिए थे. हालांकि तब से अब तक रिपोर्ट लागू नहीं हो सकी. उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. इन्हें ही स्वामीनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है और अक्सर इन्हीं रिपोर्टों को लागू करने की मांग भी की जाती है.

नरेंद्र मोदी कमेटी ने MSP पर क्या कहा

नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते साल 2011 में केंद्र की मनमोहन सरकार को किसानों को लेकर एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट का नाम है ‘रिपोर्ट ऑफ वर्किंग ग्रुप कंज्यूमर अफेयर्स’. ये रिपोर्ट आज भी narendramodi.in है.

दरअसल, 2010 में उपभोक्ता मामलों से जुड़े वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया था. तब नरेंद्र मोदी इस कमेटी के अध्यक्ष थे. रिपोर्ट में 20 तरह की सिफारिशें की गई थी. इन सिफारिशों को लागू करने के लिए 64 सूत्रीय एक्शन प्लान भी बताया गया था.

रिपोर्ट में एमएसपी पर खरीदी जाने वाली फसलों को खरीदने के लिए एक संस्था का निर्माण करने की सिफारिश की गई थी. क्योंकि केंद्रीय संस्थान फसल खरीदने के लिए हर जगह नहीं पहुंच पाते हैं इसलिए राज्य की सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन और कोऑपरेटिव संस्थाओं को फसल की खरीद का काम सौंपने की जिम्मेदारी देने की बात कही गई थी.

इसके अलावा मोदी कमेटी की रिपोर्ट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 10-ए के तहत जमाखोरी के अपराध को गैर-जमानती बनाने और ईसी अधिनियम के तहत जल्द न्याय के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की सिफारिश की थी. साथ ही मोदी समिति की रिपोर्ट यह भी सिफारिश करती है कि पीबीएम अधिनियम (आम बोलचाल में कालाबाजारी अधिनियम) के तहत निवारक निरोध की अवधि को छह महीने से बढ़ाकर एक साल कर दिया जाए.

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