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History Of Cyprus: पीएम मोदी को सर्वोच्च सम्मान देने वाला साइप्रस का क्या है इतिहास? आखिर क्यों है इसके झंडे पर खुद का नक्शा? जानें विस्तार से

Published
1 महीना agoon
By
News Desk
History Of Cyprus: दुनिया के लगभग हर देश का अपना एक खास राष्ट्रीय ध्वज होता है – कोई रंगों से अपनी आज़ादी की कहानी कहता है, तो कोई प्रतीकों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूरी दुनिया में सिर्फ दो देश ऐसे हैं जिनके राष्ट्रीय ध्वज पर उनका खुद का मानचित्र (Map) छपा हुआ है? और इस अनोखी सूची में सबसे पहला नाम आता है साइप्रस (Cyprus) का।

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के दौरान साइप्रस फिर से वैश्विक चर्चाओं में आया। (History Of Cyprus) भारत और साइप्रस के रिश्ते ऐतिहासिक और गहरे रहे हैं, लेकिन तुर्किये की बदलती कूटनीति और क्षेत्रीय समीकरणों के चलते यह संबंध अब नए रणनीतिक मायनों में फिर उभर रहे हैं।
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इस लेख में हम जानेंगे कि साइप्रस के झंडे पर उसका नक्शा क्यों है, यह झंडा कब और क्यों बनाया गया, इसका इतिहास क्या है, और यह दुनिया में इतना खास क्यों है।
History Of Cyprus: साइप्रस – एक ऐतिहासिक द्वीपीय राष्ट्र
साइप्रस का झंडा उसकी संवेदनशील भौगोलिक और सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए एकता और तटस्थता का प्रतीक बनाकर तैयार किया गया है। (History Of Cyprus) भूमध्य सागर में स्थित यह द्वीप यूरोप, एशिया और मध्य-पूर्व के संगम पर है और भौगोलिक रूप से एशिया में होते हुए भी यूरोपीय संघ का सदस्य है। 1960 में जब साइप्रस को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली, तब यहां दो प्रमुख समुदाय ग्रीक साइप्रियट और तुर्क साइप्रियट रहते थे। चूंकि किसी एक समुदाय के झंडे को अपनाना पक्षपातपूर्ण माना जाता, इसलिए एक नया, संतुलित और समावेशी झंडा बनाया गया। इस झंडे में सफेद पृष्ठभूमि पर द्वीप का नक्शा और नीचे दो हरी जैतून की शाखाएं हैं, जो शांति। सामंजस्य और दोनों समुदायों के बीच एकता का संदेश देती हैं।
साइप्रस का झंडा – एकता, शांति और पहचान का प्रतीक
साइप्रस का राष्ट्रीय ध्वज अपनी अनूठी रचना और गहरे प्रतीकात्मक अर्थों के कारण वैश्विक स्तर पर एक विशिष्ट पहचान रखता है। (History Of Cyprus) इसे 16 अगस्त 1960 को उस समय अपनाया गया था, जब साइप्रस ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इस ध्वज की सफेद पृष्ठभूमि शांति और तटस्थता का प्रतीक है, जो द्वीप पर रहने वाले विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्द बनाए रखने के उद्देश्य को दर्शाती है।
झंडे के केंद्र में बना तांबे-नारंगी रंग का द्वीप का नक्शा, साइप्रस में प्राचीन काल से पाए जाने वाले तांबे की प्रचुरता और उसके ऐतिहासिक महत्व को उजागर करता है। दिलचस्प बात यह है कि ‘तांबा’ के लिए प्रयुक्त लैटिन शब्द Cyprium से ही ‘Cyprus’ नाम की उत्पत्ति मानी जाती है। (History Of Cyprus) नक्शे के नीचे बनी दो हरी जैतून की शाखाएं ग्रीक और तुर्की साइप्रियट समुदायों के बीच शांति, सहयोग और एकता का संदेश देती हैं। यह झंडा दुनिया के उन गिने-चुने राष्ट्रीय ध्वजों में से एक है, जिनमें देश का मानचित्र दर्शाया गया है। इसका डिज़ाइन जानबूझकर इस तरह बनाया गया कि इसमें किसी भी धार्मिक, राजनीतिक या राष्ट्रीय पक्षपात की झलक न हो, जिससे यह एक समावेशी और तटस्थ राष्ट्र की भावना को प्रतिबिंबित करता है।
मानचित्र वाला झंडा क्यों?
साइप्रस के राष्ट्रीय ध्वज में द्वीप का नक्शा केवल सजावटी तत्व नहीं है बल्कि यह एक सोच-समझकर लिया गया सामाजिक और राजनीतिक निर्णय था। 1960 में स्वतंत्रता प्राप्त करते समय साइप्रस में दो प्रमुख समुदाय ग्रीक साइप्रियट और तुर्की साइप्रियट रहते थे, जिनके बीच ऐतिहासिक मतभेद और तनाव मौजूद थे। (PM Modi Cyprus Visit) ऐसे में राष्ट्रीय ध्वज को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया कि वह किसी एक समुदाय के बजाय पूरे देश की साझा पहचान को दर्शाए।
ध्वज के केंद्र में द्वीप का नक्शा और नीचे बनी दो हरी जैतून की शाखाएं जानबूझकर ऐसे प्रतीक चुने गए जो तटस्थ हों और दोनों समुदायों को जोड़ने का कार्य करें। (History Of Cyprus) यह डिज़ाइन इस विचारधारा को दर्शाता है कि साइप्रस की पहचान जातीय या धार्मिक आधार पर नहीं, बल्कि एक संयुक्त राष्ट्र के रूप में होनी चाहिए। नक्शा देश की भौगोलिक एकता को दर्शाता है, जबकि जैतून की शाखाएं शांति, सहयोग और सौहार्द का संदेश देती हैं।
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तुर्की का आक्रमण और झंडे का राजनीतिक प्रभाव
1974 में ग्रीस समर्थित तख्तापलट के जवाब में तुर्की द्वारा साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर सैन्य आक्रमण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप द्वीप दो भागों में बंट गया। (History Of Cyprus) दक्षिणी हिस्सा ‘रिपब्लिक ऑफ साइप्रस’ के रूप में और उत्तरी हिस्सा, जिसने खुद को ‘तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस’ घोषित किया। हालांकि इस उत्तरी हिस्से को आज भी केवल तुर्की ही मान्यता देता है, जबकि शेष विश्व और संयुक्त राष्ट्र केवल रिपब्लिक ऑफ साइप्रस को ही आधिकारिक राष्ट्र के रूप में स्वीकार करते हैं।
इसी प्रकार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त झंडा वही है जिसमें सफेद पृष्ठभूमि पर साइप्रस का नक्शा और जैतून की दो शाखाएं दर्शाई गई हैं, जो द्वीप की एकता और शांति की भावना का प्रतीक है। (History Of Cyprus) जबकि उत्तरी साइप्रस का अपना एक अलग झंडा है, उसे किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है।
दुनिया में केवल दो झंडों पर मानचित्र
दुनिया में केवल दो देश ऐसे हैं जिनके राष्ट्रीय ध्वज पर उनके देश का नक्शा स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है जिनमे साइप्रस और कोसोवो शामिल है। (History Of Cyprus) साइप्रस का राष्ट्रीय झंडा 1960 में अपनाया गया था और यह विश्व का पहला ऐसा झंडा बना जिसमें देश का पूरा नक्शा (copper-orange रंग में) सफेद पृष्ठभूमि पर दिखाया गया।
वहीं कोसोवो, जिसने 2008 में स्वतंत्रता की घोषणा के बाद अपना झंडा अपनाया, उसमें भी देश का नक्शा और छह सितारे शामिल हैं जो वहां की जातीय विविधता को दर्शाते हैं। (History Of Cyprus) हालांकि कोसोवो को आज भी सीमित अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। जिससे साइप्रस का झंडा न केवल पहले आने वाला, बल्कि पूरी तरह मान्यता प्राप्त और विशिष्ट उदाहरण बन जाता है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो साइप्रस का ध्वज न केवल भौगोलिक पहचान, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक संदेश का भी शक्तिशाली प्रतीक है।
भारत-साइप्रस संबंध – पुराने मित्र, नए अवसर
भारत और साइप्रस के बीच ऐतिहासिक संबंध 1960 से ही गहरे और विश्वासपूर्ण रहे हैं। जब भारत ने साइप्रस की स्वतंत्रता का गर्मजोशी से स्वागत किया और तब से उसकी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का निरंतर समर्थन किया है। समय के साथ दोनों देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक सहयोग ने भी गति पकड़ी है। (History Of Cyprus) व्यापार, निवेश, शिक्षा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान से लेकर समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में साझेदारी लगातार मजबूत हुई है। तुर्किये की आक्रामक नीतियों और साइप्रस में उसके हस्तक्षेप के बीच भारत ने हमेशा स्पष्ट रूप से साइप्रस के संप्रभु अधिकारों के समर्थन में आवाज उठाई है, जिससे इन द्विपक्षीय संबंधों को और भी प्रासंगिकता मिली है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक यात्रा जो दो दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली साइप्रस यात्रा रही, ने इन संबंधों को नई दिशा और ऊर्जा दी है। विशेष रूप से व्यापार, निवेश और रणनीतिक सहयोग के स्तर पर।
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