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Indian peacekeeper: भारतीय सेना की बड़ी वापसी, इजरायल के दबाव में यूएन झुका, क्या लेबनान में बढ़ेगा हिजबुल्लाह का खतरा?

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Indian peacekeeper: लगभग 28 साल बाद भारत के 900 सैनिक लेबनान से लौटने जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने दबाव में आकर दिसंबर 2026 से इजरायल-लेबनान सीमा पर शांति सैनिकों की गश्त को खत्म करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय रविवार से यूनिफिल (संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल) के कार्यकाल की समाप्ति से पहले लिया गया, जिसमें यूएन के सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से इसे 16 महीने और बढ़ाने की बात कही।

1978 में यूएन ने इजरायल और लेबनान सीमा पर शांति सैनिकों को तैनात किया था। इसका मुख्य उद्देश्य लेबनान से इजराइली सैनिकों की वापसी की निगरानी करना था। (Indian peacekeeper) अब, करीब 47 साल बाद यह शांति मिशन समाप्त हो जाएगा, जिसमें भारतीय सेना का पिछले 27 वर्षों से महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रस्ताव के तहत, दिसंबर 2026 से यूएन 10,800 शांति सैनिकों को व्यवस्थित तरीके से वापस बुलाएगा।

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Indian peacekeeper: भारत का शांति मिशन में योगदान

भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में योगदान देने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है। 1948 से अब तक भारत के दो लाख से अधिक सैनिक 49 शांति मिशनों में अपनी सेवा दे चुके हैं। वर्तमान में भारत के 6,400 सैनिक कांगो, सोमालिया, हैती, लेबनान, साइप्रस, दक्षिण सूडान, अबेई, मध्य पूर्व और पश्चिमी सहारा में तैनात हैं।

लेबनान में भारतीय सैनिक

भारत ने 1998 में यूनिफिल का हिस्सा बनने के बाद से लेबनान-इजरायल सीमा पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। (Indian peacekeeper) वर्तमान में भारत के लगभग 900 जवान 7 मद्रास रेजिमेंट के तहत तैनात हैं। यह यूनिफिल की सबसे बड़ी टुकड़ियों में से एक है। भारतीय सेना और लेबनान का संबंध पहले और द्वितीय विश्व युद्ध के समय से भी रहा है, जब भारत के 400 से ज्यादा सैनिक लेबनान के कब्रिस्तानों में दफन हैं।

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अब तक 164 भारतीय सैनिक यूएन शांति मिशन के दौरान अपनी जान की कुर्बानी दे चुके हैं। 2007 में भारत ने लाइबेरिया में महिला सैनिकों को तैनात कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया था, जो पहले शांति मिशन में महिला टुकड़ी भेजने वाला देश बना था।

शांति मिशन से इजरायल और अमेरिका की नाराजगी

अमेरिका और इजरायल ने महीनों तक यूएन पर दबाव डाला, जिसके बाद यह निर्णय लिया गया। (Indian peacekeeper) अमेरिका ने शांति मिशन को जल्द खत्म करने की मांग की थी, जबकि इजरायल का कहना था कि शांति मिशन हिजबुल्लाह को कमजोर करने में नाकाम रहा है। (Indian peacekeeper) दोनों देशों का मानना है कि यह मिशन प्रभावी नहीं रहा। यूएन ने जवाब में कहा कि यूनिफिल एक निगरानी बल है और आत्मरक्षा के अलावा बल प्रयोग नहीं कर सकता।

लेबनान ने किया स्वागत

लेबनान के प्रधानमंत्री नवाफ सलाम ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया और कहा कि यह इजरायल से उन पांच स्थानों पर कब्जा छोड़ने की मांग को दोहराता है, जिन पर उसने अवैध रूप से कब्जा किया है।

फ्रांस और इटली ने जताई आपत्ति

फ्रांस और इटली ने शांति सैनिकों की वापसी पर आपत्ति जताई है, क्योंकि उनका मानना है कि अगर शांति सैनिकों को वापस बुला लिया गया और लेबनान की सेना सीमा पर पूरी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पाई, तो हिजबुल्लाह इसका फायदा उठा सकता है। इस मुद्दे पर फ्रांस, आयरलैंड, ऑस्ट्रिया और पोलैंड शांति मिशन को और बढ़ाने के लिए बातचीत कर रहे हैं।

इस बदलाव से लेबनान-इजरायल सीमा पर सुरक्षा की नई दिशा तय हो रही है, और भारतीय सैनिकों का इस प्रक्रिया में क्या स्थान रहेगा, यह समय के साथ स्पष्ट होगा।

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