Lok Sabha Election 2024 : लोकसभा चुनाव में इस बार बहुजन समाज पार्टी पिछले चुनावों की तरह मजबूत तरीके से लड़ती नजर नहीं आ रही है। सातवां और आखिरी चरण बसपा के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इस चरण की दो सीटों पर पिछले चुनाव में पार्टी अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रही थी। 2019 के चुनाव में गाजीपुर और घोसी लोकसभा सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी मगर इस बार उस प्रदर्शन को दोहरा पाना पार्टी के लिए काफी मुश्किल माना जा रहा है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव समेत कई अन्य नेताओं की ओर से बसपा को भाजपा की बी टीम बताया जा रहा है मगर बसपा सातवें चरण की कई सीटों पर भाजपा के लिए भी मुसीबत बन गई है। घोसी मिर्जापुर,चंदौली सलेमपुर और बांसगांव लोकसभा सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने भाजपा की सियासी राह को मुश्किल बना दिया है।
इन सीटों पर बसपा भले खुद जीतने की स्थिति में न हो मगर पार्टी ने जातीय समीकरण ऐसे उलझा दिए हैं कि भाजपा के लिए भी जीत की राह मुश्किल हो गई है। इसी तरह पूर्वांचल की कई सीटों पर बसपा सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए भी बड़ी मुसीबत बनती हुई दिख रही है।
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन था। आखिरी चरण वाली सीटों में पांच पर बसपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे जबकि आठ सीटों पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई थी। इनमें से गाजीपुर और घोसी लोकसभा सीटों पर बसपा को जीत हासिल हुई थी।
गाजीपुर में बसपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी 51.2 फ़ीसदी वोटों के साथ और घोसी में बसपा प्रत्याशी अतुल सिंह ने 50.3 फ़ीसदी मतों के साथ जीत हासिल की थी।
इस बार के लोकसभा चुनाव में अफजाल अंसारी ने पाला बदल लिया है और वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर गाजीपुर के चुनावी मैदान में एक बार फिर भाजपा को चुनौती दे रहे हैं। दूसरी ओर अतुल सिंह के रेप और कुछ अन्य मामलों में फंसने के बाद बसपा मुखिया उन्हें पहले ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं।
सातवें चरण की सभी 13 लोकसभा सीटों पर बसपा ने इस बार अपने दम पर प्रत्याशी उतारे हैं। बसपा मुखिया मायावती ने गाजीपुर में डॉक्टर उमेश कुमार सिंह तो घोसी में बालकृष्ण चौहान को टिकट दिया है। अन्य लोकसभा सीटों पर भी भाजपा मुखिया मायावती ने जातीय समीकरण के लिहाज से मजबूत प्रत्याशी उतार दिए हैं।
वाराणसी में बहन जी ने अतहर जमाल लारी को चुनाव मैदान में उतारा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय की निगाहें मुस्लिम वोट बैंक पर लगी हुई हैं मगर लारी मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाते हुए दिख रहे हैं।
उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम बहुल इलाकों पर फोकस कर रखा है और ऐसे में बसपा की ओर से मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी से कांग्रेस को सियासी नुकसान होना तय माना जा रहा है।
महाराजगंज और गोरखपुर में भी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर सपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ने की कोशिश की है। बलिया और देवरिया लोकसभा सीटों पर बसपा की ओर से उतारे गए यादव प्रत्याशी भी विपक्षी गठबंधन के लिए मुसीबत बने हुए हैं।
वैसे बसपा के प्रत्याशी केवल विपक्ष के लिए ही नहीं बल्कि कई सीटों पर भाजपा के लिए भी बड़ी मुसीबत साबित हो रहे हैं। सलेमपुर में बहन जी ने बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को चुनाव मैदान में उतार दिया है। भीम राजभर के चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा की चुनौतियां बढ़ गई हैं और ओमप्रकाश राजभर फैक्टर का भी यहां काम करना मुश्किल माना जा रहा है।
बांसगांव सुरक्षित लोकसभा सीट पर भी भाजपा ने सदल प्रसाद की जगह डॉक्टर रामसमुझ को चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सदल प्रसाद इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं जबकि भाजपा ने तीन बार के सांसद कमलेश पासवान पर भरोसा जताया है।
घोसी में बसपा ने पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को चुनाव मैदान में उतार दिया है। भाजपा ने नोनिया जाति के नेता दारा सिंह चौहान को पार्टी में जातीय समीकरण साधने के लिए ही शामिल कराया था मगर बालकृष्ण चौहान के चुनाव मैदान में उतरने से दारा सिंह चौहान के लिए अपने गृह जिले में ही नोनिया मतों को एनडीए के पक्ष में डलवाना एक बड़ी चुनौती बन गया है। इस लोकसभा क्षेत्र में सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर एनडीए के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे हैं।
इसी तरह चंदौली में बसपा की ओर से सत्येंद्र कुमार मौर्य की उम्मीदवारी भाजपा प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय के लिए बड़ा खतरा बनती हुई दिख रही है। चंदौली के मौर्य मतदाताओं का पहले भाजपा को समर्थन हासिल होता रहा है मगर सत्येंद्र कुमार मौर्य के चुनाव मैदान में उतरने से महेंद्र नाथ पांडेय के हैट्रिक लगाने की राह में मुश्किल पैदा हो गई है। यहां भाजपा और सपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह के बीच मुकाबला काफी टाइट हो गया है।
मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र में बसपा प्रत्याशी मनीष त्रिपाठी ने केंद्रीय मंत्री और अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। पूर्वांचल में ब्राह्मण मतदाताओं को भाजपा का कोर वोटर माना जाता रहा है मगर इस चुनाव क्षेत्र में मनीष त्रिपाठी की उम्मीदवारी ब्राह्मण मतदाताओं में सेंध लगाती हुई दिख रही है। इससे अनुप्रिया पटेल को नुकसान होना तय माना जा रहा है।