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Mokama Anant Singh: अनंत सिंह के जेल जाने से बिहार चुनाव में बंपर फायदा! मोकामा में ‘छोटे सरकार’ की राजनीति कितनी असरदार

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Mokama Anant Singh: बिहार की सियासत में हलचल मचाने वाला नाम फिर सुर्खियों में है। वह है मोकामा के बाहुबली नेता और पूर्व विधायक अनंत सिंह। जिस अंदाज में उनकी गिरफ्तारी हुई, उसने पूरे राज्य की राजनीतिक फिजा को झकझोर दिया है। कभी “छोटे सरकार” के नाम से मशहूर अनंत सिंह अब जेल की सलाखों के पीछे हैं, लेकिन मोकामा की सियासत में उनका असर अब भी उतना ही गहरा है। आइये जानते हैं कि अनंत की गिरफ्तारी के बाद उन्हें कितना चुनावी फायदा मिल सकता है।

Mokama Anant Singh: गिरफ्तारी से बदली मोकामा की तस्वीर

अनंत सिंह को गैंगस्टर से नेता बने दुलारचंद यादव की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया है। यह खबर जैसे ही बाहर आई, मोकामा की राजनीति में तूफान आ गया। (Mokama Anant Singh) विरोधी खेमे ने इसे मौके के तौर पर देखा, जबकि समर्थकों ने इसे साजिश बताया। करीब दो दशक से मोकामा सीट पर अनंत सिंह का दबदबा रहा है। उनकी छवि जनता के बीच एक ऐसे नेता की रही है, जो ताकत और संपर्क दोनों का अनोखा मिश्रण है। लेकिन अब जब वे जेल में हैं, सवाल यह है कि क्या उनकी गैरहाजिरी से विपक्ष को बढ़त मिलेगी, या क्या यह गिरफ्तारी खुद उनके लिए “राजनीतिक हथियार” साबित होगी?

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पत्नी नीलम देवी ने संभाला मोर्चा

अनंत सिंह की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उनकी पत्नी नीलम देवी ने मैदान संभाल लिया। उन्होंने अपने पति की “लड़ाई” को अपना मिशन बना लिया है। (Mokama Anant Singh) केंद्रीय मंत्री और जेडीयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह भी उनके समर्थन में खुलकर उतरे हैं। उन्होंने कहा, “हर उम्मीदवार को अनंत सिंह की तरह लड़ना होगा।” मोकामा की गलियों में यह जुमला अब नारा बन गया है- “अनंत सिंह जेल में हैं, पर जज्बा मैदान में है।”

जातीय समीकरणों का पेचीदा खेल

मोकामा में राजनीति हमेशा जातीय गणित के इर्द-गिर्द घूमती रही है। अनंत सिंह भूमिहार समुदाय से हैं, जबकि मारे गए दुलारचंद यादव OBC वर्ग के थे। (Mokama Anant Singh) यहां यादव, दलित और ओबीसी मतदाता मिलकर नतीजों की दिशा तय करते हैं। सरकार ने इस केस में अनंत सिंह के करीबी दो साथियों मणिकांत ठाकुर (OBC) और रंजीत राम (दलित) को भी गिरफ्तार किया है। इससे सत्ता पक्ष ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि कार्रवाई किसी जाति के खिलाफ नहीं, बल्कि अपराध के खिलाफ है। इससे विपक्ष की “सवर्ण बनाम पिछड़ा” की कहानी कुछ कमजोर पड़ गई है।

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विपक्ष की सियासी चाल और बढ़ती बेचैनी
महागठबंधन का दावा है कि यह गिरफ्तारी राजनीतिक दबाव में की गई है। विपक्ष सरकार पर “जंगलराज वापसी” के आरोप लगा रहा है और कह रहे है कि यह केस केवल एक बहाना है। इस बीच, धनुक समुदाय का रुख इस चुनाव में निर्णायक हो सकता है। (Mokama Anant Singh) अनंत सिंह की FIR में इस समाज के लोगों के नाम आने से समीकरण उलझ गए हैं। जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी पियूष प्रियदर्शी, जो धनुक वोट बैंक में पकड़ रखते हैं, अब खुद को इस विवाद से अलग दिखाने की कोशिश में हैं।

जेल से भी जारी है सियासी दांवपेंच

अनंत सिंह के समर्थक उन्हें अब “राजनीतिक शहीद” की तरह पेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने साजिश के तहत उन्हें फंसाया है। (Mokama Anant Singh) वहीं नीलम देवी हर सभा में यही संदेश दे रही हैं कि “अनंत जी की लड़ाई अब मेरी लड़ाई है।” यह जंग अब सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि इज्जत और जातीय गर्व की लड़ाई बन चुकी है।

मोकामा की लड़ाई: दो बाहुबलियों के घराने आमने-सामने

मुकाबले में हैं वीणा देवी, जो दूसरे बाहुबली सुरजभान सिंह की पत्नी हैं। यानी मोकामा का रण सिर्फ वोटों की लड़ाई नहीं, बल्कि शक्ति, प्रभाव और विरासत की टक्कर है। अब देखना यह होगा कि क्या अनंत सिंह जेल से भी अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रख पाएंगे, या मोकामा इस बार एक नई कहानी लिखेगा, जहां ताकत की जगह जनता का फैसला सबसे ऊपर होगा।

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