North Korea 200 year old bomb: जब दुनिया सुपर-सोनिक मिसाइलों, ड्रोन वॉरफेयर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित युद्धों की बात कर रही है, तब यूक्रेन की धरती पर एक ऐसा दृश्य सामने आया है जो तकनीकी युद्ध के युग में किसी रिट्रो वॉर मूवी जैसा लगता है। (North Korea 200 year old bomb) रूस की मदद के नाम पर उत्तर कोरिया ने जो हथियार भेजे हैं, वो इतने पुराने हैं कि उन्हें देखकर सैन्य विशेषज्ञों की आंखें फटी की फटी रह गईं। ये वो हथियार हैं जो न तो आधुनिक हैं, न सटीक, न स्मार्ट और न ही तकनीकी रूप से उन्नत — बल्कि ऐसे हथियार जो या तो परेड की शोभा बढ़ाते हैं या किसी संग्रहालय में धूल खाते नजर आते हैं।
North Korea 200 year old bomb: कुर्स्क में झांकता अतीत: जंग का मैदान या हथियारों का मेला?
रूस और यूक्रेन की सीमा पर स्थित कुर्स्क इलाके में अब उत्तर कोरिया के 60 mm और 140 mm मोर्टार तैनात हैं — वो भी युद्ध के मैदान में! जो हथियार 1980 से पहले विकसित हुए थे, और जिन्हें 1992 की उत्तर कोरियाई सैन्य परेड में आखिरी बार देखा गया था, अब रूसी सैनिकों के कंधों पर लदे दिख रहे हैं। (North Korea 200 year old bomb) रूसी मिलिट्री ब्लॉगर्स द्वारा जारी की गई तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि 76वीं एयर असॉल्ट डिवीजन के पैराट्रूपर्स इन हथियारों के साथ तैनात हैं। यहां तक कि ऐसी भी अटकलें हैं कि उत्तर कोरियाई सैनिक भी रूसियों के साथ मिलकर ऑपरेशनों में शामिल हैं। सैन्य विश्लेषक जॉस्ट ओलिएमान्स के अनुसार, यह पहला मौका है जब इन ‘विंटेज’ हथियारों को सक्रिय युद्ध में इस्तेमाल होते देखा गया है। 60 mm मोर्टार्स, जो कभी नाटो हथियारों की नक़ल माने जाते थे, अब अपने अस्तित्व को साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, 140 mm मोर्टार जो 1981 में तैयार हुआ और 1992 में दुनिया के सामने आया, अब यूक्रेन की धरती पर धमाके कर रहा है।
हथियारों की ‘मिसमैच’ मुसीबत में रूस
इन पुराने हथियारों के आने से रूस को अब सप्लाई चेन की एक नई पहेली सुलझानी पड़ रही है। उत्तर कोरियाई मोर्टार्स का कैलिबर रूसी हथियार प्रणाली से मेल नहीं खाता, जिससे गोला-बारूद की सप्लाई, री-लोडिंग, मरम्मत और रख-रखाव में गंभीर दिक्कतें आ सकती हैं। यह एक ऐसा ‘लॉजिस्टिक नाइटमेयर’ है, जिसे रूस को युद्ध के तनाव के बीच सुलझाना पड़ रहा है। (North Korea 200 year old bomb) हाल ही में यह भी सामने आया है कि रूस ने उत्तर कोरिया से मिले Koksan नामक स्वचालित तोपों से अपनी नई आर्टिलरी ब्रिगेड को लैस किया है। ये भी 1970-80 के दशक की तकनीक पर आधारित हथियार हैं, जिनकी विश्वसनीयता पर खुद रूसी कमांडर्स को संदेह है।
मित्रता या मजबूरी? रूस-किम गठजोड़ पर दुनिया की नजर
दुनिया भर की निगाहें अब रूस और उत्तर कोरिया के बीच बढ़ती सैन्य साझेदारी पर टिक गई हैं। जहां एक ओर पश्चिमी देश रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा चुके हैं, वहीं उत्तर कोरिया जैसे ‘आइसोलेटेड स्टेट्स’ रूस के लिए जीवनरेखा बनकर उभरे हैं। (North Korea 200 year old bomb) लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या रूस अब हथियारों की कमी से इतना जूझ रहा है कि उसे संग्रहालय के मोर्टार उठाने पड़े? किम जोंग उन के लिए यह एक सुनहरा मौका है — वो रूस की जरूरतों को पूरा करके न सिर्फ एक शक्तिशाली मित्र राष्ट्र को खुश कर रहे हैं, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी मौजूदगी भी दर्ज करा रहे हैं। हालांकि, ये ‘कूटनीतिक व्यापार’ कितना कारगर होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि ये पुराने हथियार आधुनिक युद्ध की मार झेल भी पाएंगे या नहीं।
यूक्रेन युद्ध की ‘पुरातन परछाइयां’
यूक्रेन युद्ध अब केवल सैन्य शक्ति की नहीं, बल्कि संसाधनों की लड़ाई बनता जा रहा है। जहां एक ओर पश्चिमी देश यूक्रेन को अत्याधुनिक ड्रोन, सैटेलाइट गाइडेड मिसाइल और साइबर टूल्स से लैस कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर रूस को उत्तर कोरिया जैसे ‘पिछड़े हथियार डिपो’ की मदद लेनी पड़ रही है। (North Korea 200 year old bomb) यह न केवल रूस की सैन्य क्षमताओं की वास्तविकता को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि युद्ध में सिर्फ बम नहीं, रणनीति और आपूर्ति की चेन भी जीत-हार तय करती है। अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि उत्तर कोरियाई हथियार रूस की जीत का कारण बनेंगे या हार की वजह। (North Korea 200 year old bomb) लेकिन एक बात तय है—इस युद्ध में हर मोर्चा अब इतिहास की धूल झाड़ कर हथियारों को पुनर्जीवित कर रहा है। शायद यूक्रेन युद्ध 21वीं सदी की पहली लड़ाई बन जाएगी, जिसमें बीसवीं सदी के हथियारों ने फिर से मोर्चा संभाला है!