UP Lok Sabha Election : लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा लगवा रही थी, लेकिन यूपी में उसे तगड़ा झटका लग गया.अब प्रारंभिक रिपोर्ट में कई खुलासे सामने आए हैं. यह मिथक पहली बार टूटा है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. केंद्र में तीसरी बार सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार को यूपी ने निराश किया है. चुनाव परिणाम के तत्काल बाद आम हो चुका था कि अगर यूपी साथ देता तो हालात कुछ और ही होते खैर, जो होना था हो चुका. अब बीजेपी के लिए जरूरी है हार की वजहों को तलाशना. इसके अलावा उस पर बीजेपी संगठन तेजी से काम कर भी रहा है.
कई दौर की बैठकों के बाद कई ऐसे कारण सामने भी आए हैं, जिनसे पता चलता है कि आखिर यूपी में बीजेपी का बुरा हाल क्यों हुआ? वहीं, बीजेपी के रणनीतिकारों के मुताबिक जल्द ही पूरी रिपोर्ट तैयार कर दिल्ली में आलाकमान को सौंपी जाएगी. उसके बाद कई महत्वपूर्ण फैसलें लिए जा सकते हैं, जिनमें पार्टी संगठन के साथ ही सरकार में बदलाव तक की बात कही जा रही है. सूत्रों के हवाले से जो खबर आ रही है, उसके मुताबिक यूपी में हार की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार हो गई है.
लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा लगवा रही थी, लेकिन यूपी में उसे तगड़ा झटका लग गया. लोकसभा चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन न कर पाने के बाद अब इसके कारणों को लेकर मंथन का दौर शुरू हो चुका है। लगातार बैठको का दौर जारी है। भाजपा के खराब प्रदर्शन से शीर्ष नेतृत्व तक हंगामा मचा है। भितरघात तो एक कारण है । साथ ही इस हार में पार्टी के अपनों से ज्यादा बाहरी भी शामिल हैं। वहीं दूसरी तरफ संघ प्रमुख मोहन भागवत के तीन दिवसीय गोरखपुर दौरे के बाद भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मुलाकात न होना भी कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है। इसके पहले जब भी संघ प्रमुख भागवत गोरखपुर आए उनकी योगी से स्वाभाविक मुलाकात होती रही है।
लोकसभा चुनावों के बाद आरएसएस और भाजपा के बीच कुछ तल्खी बढ़ी है। संघ प्रमुख इशारों इशारों में भाजपा की चुनावी रणनीति की आलोचना कर चुके हैं।उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को 80 में से 80 सीटें जीतने की उम्मीद थी। लेकिन चुनाव परिणाम में भाजपा को करीब आधी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा हैइस बार भाजपा को उत्तर प्रदेश की 80 में से 33 सीटों पर जीत मिली और उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने दो और अपना दल (एस) ने एक सीट जीती है। वहीं, इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश में 43 सीटें जीतने में कामयाब रहा, जिसमें 37 सीटें समाजवादी पार्टी और छह सीटें कांग्रेस ने जीती है. इसके अलावा एक सीट बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद ने जीती है।
बीते कुछ दिनों में भाजपा के भीतर अंतरकलह सतह पर आ गई है। पार्टी हाई कमान इस बात पर मंथन कर रहा है कि आखिर कैसे दिन पर दिन पार्टी का असर कम होता जा रहा हैं जबकि प्रदेश और केंद्र सरकार की जनहित नीतियों की आम जन में सराहना देखने को मिलती है।
इसी उत्तर प्रदेश में भाजपा 10 साल पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड 71 सीटें और 2017 के विधानसभा चुनाव में 312 सीटें जीतने में सफल रही थी। लेकिन 2024 में वह महज 33 सीटों पर सिमट गई। इसके चलते ही भाजपा केंद्र में अकेले अपने दम पर बहुमत से दूर रह गई। भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर 2014 में यूपी से 14 साल के सियासी वनवास को खत्म करने में सफल हुई थी।
इसके बाद से भाजपा का सियासी ग्राफ लगातार घट रहा है और यही पैटर्न जारी रहा तो पार्टी के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव टेंशन बढ़ा सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 71 सीटें मिली थीं। 2019 में मोदी-योगी की साझी ताकत के बावजूद भाजपा की सीटें घटीं।भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 80 में 62 सीटें मिलीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के खाते में महज 33 सीटें आईं, जबकि इंडी गठबंधन ने 37 सीटों पर सफलता हासिल की। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के प्रदर्शन ठीक ही रहा। 2017 के विधानसभा चुनाव में अकेले भाजपा ने 325 सीटें जीत कर योगी आदित्यनाथ को यूपी की कमान सौंपी थी। सपा-कांग्रेस को तब सम्मिलित रूप से 47 सीटें मिली थीं।
कहा ये भी जा रहा है कि चुनावों से पूर्व पार्टी के कार्यकर्ताओं से ज्यादा बाहरी लोगो को तवज्जो देना ही सबसे बड़ा कारण है। हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर खुलेआम भाजपा के नेता अपनी नाराजगी जता रहे हैं। भाजपा विधायक सुशील सिंह और संगीत सोम पर लगे आरोप इसका पुख्ता उदाहरण हैं। वहीं दूसरी तरफ इंडी गठबंधनने चुनाव के दौरान संविधान बदलने का मुद्दा उठाकर भाजपा को उलझा लिया।
भाजपा इसका काट नहीं दे पाई। इस दौरान भाजपा के कुछ नेताओं के 400 पार के दावे के पीछे संविधान बदलने संबंधी बयानों ने सपा व कांग्रेस के आरोपों पर लोगों को भरोसा बढ़ा दिया। इसके साथ ही पार्टी के सांसदों और पदाधिकारियों के बीच तालमेल भी अच्छा नहीं रहा, जिसका असर वोट बैंक तक पहुंचने में दिखा. विशेष रूप से दलित वर्ग के वोटर्स के प्रति भाजपा की कमजोरी साफ दिखी
यही नहीं दो दिनों पहले खुद मुख्यमंत्री से मिले कई भाजपा विधायकों और नेताओं ने अपने अपने क्षेत्रों में खराब प्रदर्शन का पूरा फीडबैक दिया है। इनमें उन नेताओं का नाम भी शामिल है।दरअसल शनिवार से प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर भाजपा ने हार की वजहों की तलाश के लिए टीमों को भेजा है। सिर्फ 24 घंटों के भीतर इन टीमों को जिस अंदाज में फीडबैक मिलना शुरू हुआ है। उससे एक बात साफ है कि भाजपा के अंदर बागी नेताओं का बड़ा तबका सक्रिय है। जिसको खासतौर पर बाहरियों का ज्यादा समर्थन प्राप्त है। खुद भाजपा नेता भी इसे स्वीकार रहे हैं कि भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे बाहरियों को तवज्जो दी गई।
लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा की अंतरकलः जगजाहिर हो चुकी है। जिसमें चुनाव को लेकर भितरघात उभर कर सामने आई। अब भाजपा से धनीपुर बलीक प्रमुख पूजा दिवाकर ने पार्टी के ही छर्रा विधायक रविन्द्र पाल सिह व पूर्व बॉक प्रमुख तेजवीर सिंह पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने जयपुर में भाजपा पर के चुनावी प्रदर्शन को लेकर निशाना साधते कहा था कि जिस पाटी ने भगवान राम की भक्ति की, लेकिन अहंकारी हो गई उसे 241 पर रोक दिया। उधर संघ की नाराज़गी भी भाजपा की हार का कारण बताई जा रही है।