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ISRO: यूरोपीय स्पेस एजेंसी के लिए वाणिज्यिक मिशन में क्यों उतरा इसरो, जानें यह कितना कठिन, क्या चुनौतियां

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ISRO: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के समर्पित वाणिज्यिक मिशन के तहत यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के प्रोबा-3 अंतरिक्ष यान आज शाम (4 दिसंबर) 4.08 बजे प्रक्षेपित कर दिया जाएगा। यह प्रक्षेपण एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन होगा, जिसे न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड की तरफ से किया जाएगा। (ISRO) यह इसरो की वाणिज्यिक शाखा है जो कि क्लाइंट अंतरिक्ष यानों को प्रक्षेपण करेगा। कंपनी को अपने नए मिशन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से ऑर्डर मिले हैं।

इसरो ने बुधवार को कहा, “आज लिफ्टऑफ की बारी है। पीएसएलवी-सी59, जो कि इसरो की विशेषज्ञता को दर्शाता है, यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) के प्रोबा-3 सैटेलाइट को कक्षा में भेजने के लिए तैयार है। (ISRO) मिशन के पीछे इसरो के इंजीनियरिंग विशेषताओं के साथ एनएसआईएल भी है, जो कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग को दर्शाता है।”

अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने हालिया मिशन के बारे में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘यह भारत की अंतरिक्ष यात्रा में मील का एक गौरवशाली पत्थर और वैश्विक साझेदारी का एक शानदार उदाहरण है।’’

ISRO: क्या है प्रोबा-3 मिशन?

प्रोबा-3 (प्रोजेक्ट फॉर ऑनबोर्ड आटोनॉमी) यान में एक डबल-सैटेलाइट शामिल है, जिसमें दो अंतरिक्ष यान सूर्य के बाहरी वायुमंडल के अध्ययन के लिए एक यान की तरह उड़ान भरेंगे। (ISRO) यह दुनिया में अपनी तरह का पहला लॉन्च बताया जा रहा है।

इसरो ने कहा कि ‘प्रोबास’ एक लातिन शब्द है, जिसका अर्थ है ‘चलो प्रयास करें’। इसरो ने कहा कि मिशन का उद्देश्य सटीक संरचना उड़ान का प्रदर्शन करना है और दो अंतरिक्ष यान – कोरोनाग्राफ और ऑकुल्टर को एकसाथ प्रक्षेपित किया जाएगा।

मिशन के लिए इसरो की क्या तैयारियां

बेंगलुरू मुख्यालय वाला इसरो इस मिशन के लिए अपने समर्पित वर्कहॉर्स ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का इस्तेमाल कर रहा है। पीएसएलवी की यह 61वीं उड़ान होगी और पीएसएलवी-एक्सएल संस्करण की यह 26वीं उड़ान होगी। (ISRO) इसे 4 दिसंबर को शाम 4.08 बजे इस स्पेसपोर्ट के पहले लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किया जाना है। 44.5 मीटर लंबा रॉकेट लगभग 18 मिनट के सफर के बाद 550 किलोग्राम वजनी प्रोबा-3 उपग्रहों को तय कक्षा में स्थापित करेगा।

कितना चुनौतीपूर्ण होगा यह मिशन?

इस मिशन के जरिये 550 किलोग्राम वजनी उपग्रहों को एक अद्वितीय अत्यधिक अंडाकार कक्षा में स्थापित किया जाना जो किसी जटिल कक्षा में सटीक लॉन्चिंग की पीएसएलवी की विश्वसनीयता को मजबूत करेगा। यूरोपीय एजेंसी को अपने इस मिशन के तहत सूर्य के वायुमंडल की सबसे बाहरी और सबसे गर्म परत, सौर कोरोना का अध्ययन करना है।

कृत्रिम सूर्यग्रहण का लिया जाएगा सहारा

प्रोबा-3 मिशन में लॉन्च सैटेलाइट कृत्रिम सूर्यग्रहण की स्थितियां बनाएंगे ताकि सूर्य की बाहरी परत यानी कोरोना का अध्ययन किया जा सके। इन जुड़वां सैटेलाइट में से एक पर कोरोनाग्राफ होगा जबकि दूसरे पर ऑल्टर होगा। (ISRO) इनमें एक सैटेलाइट सूर्य को छिपाएगी जबकि दूसरी के सहारे कोरोना का निरीक्षण किया जाएगा।

दो साल चलने वाला मिशन बेहद खास

प्रोबा-3 मिशन स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली, और स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा है। दो साल तक चलने वाला यह मिशन इस वजह से भी खास है क्योंकि इसमें एक साथ दो सैटेलाइट लॉन्च किए जाने हैं। इन सैटेलाइट का सटीक ढंग से अपनी जगह पर पहुंचना बेहद अहम हैं क्योंकि अभियान की सफलता के लिए इनका एक-दूसरे के साथ तालमेल बेहद अहम है। अगर यह मिशन सफल रहता है तो आने वाले समय में अलग-अलग देशों के बीच किसी मिशन में एक साथ आकर भूमिका निभाने की राह खुलेगी। इसी के साथ भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के लिए विदेशी एजेंसियों के साथ काम करने और इस क्षेत्र को फायदेमंद बनाने का मौका पैदा होगा।

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