World’s Tallest Railway Bridge in Manipur: भारत की रेलवे अवसंरचना को मजबूती देने की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे (NFR) ने मणिपुर में स्थित ब्रिज नंबर 164, जिसे प्रसिद्ध रूप से “नोनी ब्रिज” कहा जाता है, पर गर्डर लॉन्चिंग का कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। (World’s Tallest Railway Bridge in Manipur) यह उपलब्धि दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे पियर ब्रिज के निर्माण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसकी ऊँचाई 141 मीटर है — जो लगभग 46-मंजिला इमारत के बराबर है।
यह पुल मणिपुर के दुर्गम और भौगोलिक रूप से जटिल नोनी ज़िले में स्थित है और यह महत्वाकांक्षी 111 किलोमीटर लंबी जीरीबाम–इम्फाल रेलवे लाइन का मुख्य केंद्र है। यह रेल परियोजना मणिपुर जैसे दूर-दराज़ पूर्वोत्तर राज्य को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने की रणनीतिक योजना का हिस्सा है।
गर्डर लॉन्चिंग की सफलता न केवल भारत की अवसंरचना निर्माण क्षमताओं को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि भारतीय रेलवे और इसके इंजीनियर अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी जटिल परियोजनाओं को पूरा करने में सक्षम हैं।
जीरीबाम–इम्फाल रेलवे लाइन पूर्वोत्तर भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेल परियोजनाओं में से एक है। इसके चालू होने के बाद, जीरीबाम से इम्फाल के बीच यात्रा का समय सड़क मार्ग से 10–12 घंटे से घटकर सिर्फ 2.5 घंटे रह जाएगा। (World’s Tallest Railway Bridge in Manipur) यह न केवल व्यापार और गतिशीलता को बढ़ाएगा, बल्कि मणिपुर जैसे कम जुड़ाव वाले क्षेत्रों में आर्थिक अवसर भी लेकर आएगा। साथ ही, यह परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा को भी सुदृढ़ करेगी, क्योंकि यह सीमा क्षेत्रों तक आसान पहुंच सुनिश्चित करेगी।
यह रेल मार्ग 45 सुरंगों और कई पुलों से होकर गुजरता है, जो इसे भारतीय रेलवे की अब तक की सबसे चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं में से एक बनाता है। इस रूट की सबसे लंबी सुरंग 10 किलोमीटर से भी अधिक लंबी है, जो इस परियोजना के दायरे और महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
World’s Tallest Railway Bridge in Manipur: अब पटरियों की बारी
गर्डर लॉन्चिंग के पूरा हो जाने के बाद अब ध्यान पटरी बिछाने और अंतिम संरचनात्मक समायोजन पर केंद्रित किया जाएगा। NFR के अधिकारियों ने बताया कि यह परियोजना 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत तक पूरी होने की उम्मीद है, हालांकि इसमें मौसम और लॉजिस्टिक्स जैसे कारक प्रभाव डाल सकते हैं।
यह उपलब्धि न केवल पूर्वोत्तर में भारत की बढ़ती इंजीनियरिंग उत्कृष्टता का प्रतीक है, बल्कि यह प्रगति, नवाचार और एकीकरण का एक उज्ज्वल संकेत भी है — जो भविष्य के भारत की नींव को और मजबूत करता है।