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Varanasi Gyanvapi Case: ज्ञानवापी फैसले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जताई नाराजगी, कहा – ‘अदालतों पर भरोसा घटा’

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Varanasi Gyanvapi Case: ज्ञानवापी फैसले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जताई नाराजगी, कहा - 'अदालतों पर भरोसा घटा'

Varanasi Gyanvapi Case: वाराणसी की जिला अदालत ने बीते दिनों ज्ञानवापी परिसर (Varanasi Gyanvapi Case) में स्थित व्यास जी तहखाने में पूजा-अर्चना का अधिकार दिया। कोर्ट के फैसले पर मुस्लिम पक्ष ने खुलकर नाराजगी जाहिर की। अब इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) की प्रतिक्रिया आई है। उसने अदालत के फैसले पर ही सवाल खड़े करते हुए आलोचना की।

मीडिया से बातचीत में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सैफुल्लाह रहमानी (Saifullah Rahmani) ने मीडिया से बातचीत में कहा कि, ‘हमारी अदालतें ऐसी राह पर चल रही हैं, जहां लोगों का भरोसा उनसे टूट रहा है। ऐसा कई कानूनी जानकार भी मानते हैं। उन्होंने कहा, कल जो वाकया पेश आया वो निराशा पैदा करने वाला है। रहमानी कहते हैं, वहां मस्जिद है। 20 करोड़ मुसलमानों को और इंसाफ पसंद शहरियों को इस फैसले से बड़ा धक्का लगा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, मुसलमान रंज की हालत में है। हिंदू और सिख जो भी यह मानते हैं कि ये मजहब का गुलदस्ता है, उन सबको इस फैसले से धक्का लगा है।’

Varanasi Gyanvapi Case: ज्ञानवापी पर फैसले से हम सदमे में हैं

ज्ञानवापी के व्यास जी तहखाने पर वाराणसी अदालत के फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शुक्रवार (02 फ़रवरी) को सीधे तौर पर कोर्ट पर सवाल खड़े किए। उसने कहा, ‘ये अदालत की तरफ से जल्दबाजी में लिया गया फैसला है। आपस में दूरी पैदा करने की कोशिश क्यों की जा रही है? दलील की बुनियाद पर फैसला हो। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आगे कहा, ज्ञानवापी में जो रहा है, उससे हम सदमे में हैं। छीनी हुई जमीन पर मस्जिद नहीं बन सकती। लोगों का भरोसा नहीं टूटना चाहिए। इस पर हम अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।’

कोर्ट ने जल्दबाजी में दिया फैसला दिया

एक खबरिया चैनल से बातचीत में सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, ‘अगर मुसलमानों की यह सोच होती कि, दूसरों के इबादतगाह पर जबरन कब्जा किया जाए तो क्या देश में इतने मंदिर मौजूद होते? उन्होंने कहा, अदालत ने जिस जल्दबाजी में फैसला दिया। पूजा की इजाजत दी, उसने दूसरे पक्ष को अपना मत स्पष्ट रखने का मौका तक नहीं दिया। इससे इंसाफ देने वाली अदालतों पर भरोसा घटा है। बाबरी मस्जिद के फैसले में कोर्ट ने माना था कि मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं था। मगर, एक तबके की आस्था को देखते हुए उसके हक में फैसला दिया गया।’

गौरतलब है कि, बुधवार को वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिंदू प्रार्थनाओं को एक बार फिर शुरू करने की अनुमति दी। तीन दशक पहले यहां पूजा-अर्चना बंद कर दी गई थी। गुरुवार को ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने जिला कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। लेकिन, उच्चतम न्यायालय ने समिति को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने के लिए कहा था।

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