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Ujjain District Court: कचहरी में सरेआम गवाह को पीटा था, 16 साल बाद 5 वकीलों को कोर्ट ने सजा दी है

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Ujjain District Court: वकालत, एक ऐसा पेशा है जिसपर लोगों को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी होती है. लेकिन क्या हो जब वकील ही कानून अपने हाथ में लेने लगें? ऐसा ही एक मामला इंदौर से सामने आया है. इंदौर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने कोर्ट परिसर में एक गवाह पर हमला करने के मामले में चार वकीलों को सजा सुनाई है. गवाह का नाम घनश्याम पटेल है और वो पेशे से पत्रकार है.

Ujjain District Court: क्या है पूरा मामला?

रिपोर्ट के मुताबिक यह पूरा मामला 10 फरवरी 2009 का है. उज्जैन डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के परिसर में एक गवाह घनश्याम पटेल पर कुर्सी, लाठी, छड़ और डंडों से हमला किया गया था. हमले के बाद गवाह को जान से मारने की धमकी दी गई और उसकी रिवॉल्वर, चेन और घड़ी भी लूट ली गई थी. हमले के बाद घायल गवाह को पहले उज्जैन के संजीवनी हॉस्पिटल, उसके बाद इंदौर के गोकुलदास हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. करीब 15 दिनों घनश्याम का इलाज चला. (Ujjain District Court) घनश्याम जिसके खिलाफ गवाही देने आया था, उसका नाम धर्मेंद्र शर्मा है. और वो धर्मेंद्र शर्मा ही थे जिन्होंने कथित तौर पर घनश्याम पर हमला किया था.

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16 साल बाद मिली सजा

इस मामले में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ धारा 307/34 के तहत केस दर्ज किया था. अब 16 साल बाद कोर्ट ने चार आरोपियों जो कि वकील भी हैं उन्हें दोषी मानते हुए सजा सुनाई है. चार आरोपी धर्मेंद्र शर्मा, शैलेन्द्र शर्मा, भवेंद्र शर्मा और पुरुषोत्तम राय वकील भी हैं. (Ujjain District Court) इंदौर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के अतिरिक्त सेशंस जज श्रीकृष्ण डागलिया ने फैसला सुनाते हुए धर्मेंद्र, शैलेन्द्र और भवेन्द्र को सात साल सश्रम सजा और 10 हजार का जुर्माना लगाया है. जबकि 90 साल के एक वकील सुरेंद्र शर्मा को तीन साल की सामान्य कैद की सजा सुनाई गई है.

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वकीलों के प्रभाव की वजह से केस ट्रांसफर

रिपोर्ट कहती है कि आरोपी वकील इलाके में अच्छी पकड़ रखते हैं. इसी वजह से केस को उज्जैन से इंदौर ट्रांसफर किया गया था. (Ujjain District Court) रिपोर्ट ये भी कहती है कि केस की सुनवाई के दौरान आरोपी वकीलों ने कई बार जजों का ट्रांसफर करवाने की कोशिश की. चूंकि पत्रकार घनश्याम इस केस में मुख्य गवाह थे इसलिए उनकी गवाही जरूरी थी. लेकिन आरोपी लगातार केस में कभी दबाव डलवाकर, कभी किसी तरीके से केस में देरी करवा रहे थे. इस वजह से मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सर्वोच्च अदालत ने 6 महीने के भीतर फैसला सुनाने का आदेश दिया. साथ ही इस मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी हस्तक्षेप किया, और जेल में रहते हुए धर्मेंद्र शर्मा का वकालत करने का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था.

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