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Non-Veg Milk Kya Hai: क्या आपका दूध सच में शाकाहारी है, जानिए नॉन वेज दूध की पूरी कहानी

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क्या होता है Non Veg Milk? क्यों हो रही है चर्चा, INDIA-US ट्रेड डील से  कनेक्शन | Navbharat Live

Non-Veg Milk Kya Hai: भारत जैसे देश में जहां दूध को ‘पूर्ण आहार’ कहा जाता है, वहां दूध की शुद्धता और इसकी उत्पत्ति को लेकर हमेशा चर्चा होती रही है। हाल ही में ‘नॉन वेज दूध’ शब्द ने लोगों की जिज्ञासा बढ़ाई है। बहुत से लोग सोच में पड़ जाते हैं कि जब दूध तो गाय, भैंस, बकरी जैसे शाकाहारी जानवरों से प्राप्त होता है। (Non-Veg Milk Kya Hai) तो उसे नॉन वेज कैसे कहा जा सकता है? क्या दूध शुद्ध शाकाहारी है या इसके उत्पादन की प्रक्रिया इसे नॉन वेज की श्रेणी में ले आती है?

इस लेख में हम इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे – दूध वास्तव में नॉन वेज है या नहीं, यह विवाद क्यों उत्पन्न हुआ, वैज्ञानिक तथ्यों और सामाजिक भावनाओं में क्या मतभेद हैं और हमें इस विषय को कैसे समझना चाहिए।

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Non-Veg Milk Kya Hai: दूध की मूल प्रकृति – क्या यह शाकाहारी है?

दूध एक प्राकृतिक जैविक तरल है जिसे स्तनधारी मादा अपने बच्चों के पोषण के लिए बनाती है। गाय, भैंस, बकरी जैसे जानवरों से दूध निकाला जाता है। हालांकि दूध निकालने की प्रक्रिया में जानवर को मारा नहीं जाता बल्कि यह कार्य उसकी जीवित अवस्था में ही किया जाता है। (Non-Veg Milk Kya Hai) दूध में न तो मांस होता है, न ही खून या किसी मृत अंग का अंश बल्कि यह एक प्राकृतिक पोषक द्रव्य होता है जिसमें प्रोटीन, वसा, विटामिन्स और अन्य आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं। इसी कारण इसे आमतौर पर शाकाहारी पदार्थ माना जाता है। (Non-Veg Milk Kya Hai) हालांकि यह मुद्दा केवल जैविक संरचना तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक पहलू भी जुड़े हुए हैं। कुछ लोग मानते हैं कि दूध उत्पादन में पशुओं के साथ होने वाले व्यवहार और उनके जीवन चक्र में मानवीय हस्तक्षेप इसे पूरी तरह शाकाहारी श्रेणी में नहीं रखता। इसलिए यह विषय केवल वैज्ञानिक नहीं बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी विचारणीय है।

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‘नॉन वेज दूध’ शब्द क्यों अस्तित्व में आया?

दूध को भले ही जैविक रूप से शाकाहारी माना जाता हो, लेकिन आधुनिक डेयरी उद्योग की वास्तविकता इसे एक नैतिक और भावनात्मक बहस का विषय बना देती है। (Non-Veg Milk Kya Hai) डेयरी फार्मों में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गायों को बार-बार जबरन गर्भवती किया जाता है और जैसे ही वे बछड़े को जन्म देती हैं, उसे माँ से अलग कर दिया जाता है । ताकि अधिक से अधिक दूध मनुष्यों के लिए निकाला जा सके। नर बछड़ों को अक्सर अनुपयोगी मानकर मार दिया जाता है या कसाईखानों में भेज दिया जाता है। कई बार जानवरों को अधिक दूध देने के लिए हार्मोन तक दिए जाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया पशु क्रूरता का संकेत देती है जिसे कुछ लोग ‘नॉन वेज मानसिकता’ से जोड़ते हैं। जैन और वैष्णव जैसी भारतीय परंपराएँ जहां हर प्रकार की हिंसा को त्यागने की बात करती हैं। वहाँ इस प्रकार के ‘हिंसक दूध’ को स्वीकार करना संभव नहीं होता। इतना ही नहीं अमेरिका में कुछ डेयरी फार्मों में गायों को मांस और हड्डियों से बने चारे खिलाए जाने की वजह से भारत में उस दूध को ‘नॉन वेज दूध’ कहा जाता है। इससे धार्मिक और सांस्कृतिक विरोध भी उत्पन्न होता है। इसलिए दूध को शुद्ध शाकाहारी मानना केवल उसकी संरचना पर निर्भर नहीं, बल्कि उसके उत्पादन से जुड़ी नैतिकता और संवेदना पर भी निर्भर करता है।

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क्या पौधों से मिलने वाला दूध इसका विकल्प हो सकता है?

हाल के वर्षों में प्लांट-बेस्ड मिल्क का प्रचलन तेज़ी से बढ़ा है और इसके पीछे मुख्य कारण है वेगन और सख्त शाकाहारी जीवनशैली को अपनाने वालों की बढ़ती संख्या। (Non-Veg Milk Kya Hai) सोया मिल्क, बादाम दूध, ओट मिल्क, नारियल दूध और राइस मिल्क जैसे विकल्प पूरी तरह पौधों से बनाए जाते हैं और इनमें किसी भी प्रकार का पशु उत्पाद शामिल नहीं होता। जिससे ये पूरी तरह शाकाहारी (वेजन) कहलाते हैं। ये न केवल पशु कल्याण के सिद्धांतों के अनुरूप होते हैं बल्कि इन्हें ‘एथिकल मिल्क’ भी कहा जाता है । क्योंकि इनके उत्पादन में किसी भी प्रकार की हिंसा या पशु शोषण शामिल नहीं होता। इसके अलावा प्लांट-बेस्ड दूध पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी अधिक लाभकारी हैं । (Non-Veg Milk Kya Hai) क्योंकि इनमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जल उपयोग और भूमि खपत पारंपरिक पशु-आधारित दूध की तुलना में काफी कम होती है। स्वास्थ्य, नैतिकता और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए आज बड़ी संख्या में लोग इन विकल्पों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

भारत में गाय को माँ का दर्जा प्राप्त है और गोसेवा तथा गोपालन जैसी परंपराएँ धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से गहराई से जुड़ी हुई हैं। गाय का दूध न केवल पोषण का स्रोत माना जाता है बल्कि पूजा-पाठ, भगवान को भोग लगाने, यज्ञ-हवन और प्रसाद बनाने जैसे पवित्र कार्यों में भी इसका विशेष महत्व है। (Non-Veg Milk Kya Hai) इसी कारण इसे एक पवित्र और शुद्ध पदार्थ माना जाता है। लेकिन जब आधुनिक डेयरी उद्योग की कठोर सच्चाई जैसे बछड़ों को माँ से अलग करना, बार-बार कृत्रिम गर्भाधान कराना, हार्मोन का इस्तेमाल जब लोगों के सामने आती है। तो वे इस परंपरा और वास्तविकता के बीच उलझन में पड़ जाते हैं। दूध की पवित्रता और उसके पीछे छिपी क्रूरता के बीच का यह विरोधाभास समाज में एक नई सोच को जन्म देता है। ‘नॉन वेज दूध’ जैसे शब्द सुनकर जहाँ कुछ लोगों को भावनात्मक ठेस पहुँचती है। (Non-Veg Milk Kya Hai) वहीं जब वे इन तथ्यों से परिचित होते हैं तो कई बार वे खुद भी इस द्वंद्व से जूझने लगते हैं। यह स्थिति आज के सामाजिक और सांस्कृतिक यथार्थ का सटीक प्रतिबिंब है।

क्या भारत में ‘नॉन वेज दूध’ की धारणा बढ़ रही है?

भारत में शहरी और शिक्षित वर्ग के बीच दूध और पशु अधिकारों को लेकर बहस तेज़ी से बढ़ रही है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिए यह वर्ग वीगन आंदोलन, पशु कल्याण और एनिमल राइट्स जैसे मुद्दों पर अधिक संवेदनशील और सक्रिय होता जा रहा है। (Non-Veg Milk Kya Hai) खासकर युवा पीढ़ी पारंपरिक डेयरी सिस्टम से जुड़ी क्रूरता के खिलाफ आवाज़ उठा रही है और सोया, बादाम, ओट जैसे प्लांट-बेस्ड दूध विकल्पों को अपनाने लगी है। वीगन एक्टिविस्ट और पशु अधिकार कार्यकर्ता लगातार किसान, उपभोक्ता और नीति-निर्माताओं के बीच जागरूकता फैला रहे हैं। जिससे लोगों के दूध सेवन को लेकर सोच में बदलाव आ रहा है। इस बढ़ती जागरूकता के चलते कुछ लोग पूरी तरह दूध का त्याग कर रहे हैं। (Non-Veg Milk Kya Hai) जबकि कई अब केवल देसी गायों के पारंपरिक गोपालन से प्राप्त नैतिक दूध को ही स्वीकार कर रहे हैं। यह बदलता दृष्टिकोण आज भारत में एक नया सामाजिक रुझान बनता जा रहा है।

वैज्ञानिक और पोषणीय दृष्टिकोण से दूध की आवश्यकता

दूध को लंबे समय से कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन B12 और विटामिन D जैसे आवश्यक पोषक तत्वों का प्रमुख स्रोत माना गया है। विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए। हालांकि आधुनिक पोषण विज्ञान और शोध अब यह दर्शाते हैं कि यही पोषक तत्व पौधों से प्राप्त प्लांट-बेस्ड दूध में भी फोर्टिफाइड रूप में उपलब्ध कराए जा सकते हैं। (Non-Veg Milk Kya Hai) सोया, बादाम, ओट आदि से बने वेजन मिल्क न केवल पौष्टिक होते हैं बल्कि लैक्टोज इनटॉलरेंस जैसी आम पाचन समस्या से पीड़ित लोगों के लिए भी एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करते हैं। लैक्टोज इनटॉलरेंस में व्यक्ति दूध में मौजूद लैक्टोज नामक शर्करा को पचा नहीं पाता जिससे गैस, पेट दर्द और दस्त जैसी समस्याएँ होती हैं। भारत में यह समस्या व्यापक है इसलिए ऐसे लोगों के लिए प्लांट-बेस्ड दूध एक बेहतरीन विकल्प बन गया है। कुल मिलाकर आज यह सिद्ध हो चुका है कि बिना पशु उत्पादों के भी संतुलित और स्वस्थ आहार संभव है। और यही कारण है कि प्लांट-बेस्ड दूध का चलन तेजी से बढ़ रहा है।

समाधान क्या है?

यदि आप दूध का सेवन करना चाहते हैं, तो यह जरूरी है कि आप उसकी गुणवत्ता और स्रोत को समझदारी से चुनें। स्थानीय और देसी गायों का दूध पारंपरिक पालन-पोषण के कारण न केवल अधिक पोषणयुक्त होता है बल्कि पशु कल्याण की दृष्टि से भी बेहतर माना जाता है। (Non-Veg Milk Kya Hai) दूध खरीदने से पहले यह देखना भी जरूरी है कि जानवरों की देखभाल, आहार और रहन-सहन की स्थिति मानवीय और सम्मानजनक हो। ताकि आप अनजाने में किसी क्रूर प्रणाली का हिस्सा न बनें। केवल जैविक और क्रुएल्टी-फ्री डेयरियों से दूध लेना इस दिशा में एक नैतिक कदम हो सकता है। (Non-Veg Milk Kya Hai) वहीं अगर आप वीगन जीवनशैली अपनाना चाहते हैं तो सोया, बादाम, ओट, नारियल जैसे पौधों पर आधारित दूध को आहार में शामिल करें और कैल्शियम, विटामिन B12, D आदि की पूर्ति के लिए संतुलित भोजन या फोर्टिफाइड उत्पादों का चयन करें। साथ ही वेगनिज्म की मूल अवधारणाओं और पोषण संबंधी पहलुओं की जानकारी भी ज़रूरी है। (Non-Veg Milk Kya Hai) यदि आप धार्मिक भावनाओं से जुड़े हैं और गाय को पूज्य मानते हैं। तो यह समझना आवश्यक है कि गोसेवा का सच्चा अर्थ केवल पूजा नहीं बल्कि गायों की देखभाल, सम्मान और हिंसा से बचाव में निहित है। ऐसे विचार और व्यवहार ही समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।

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