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Shubhanshu Shukla Axiom Mission 4: तीसरी बार टली अंतरिक्ष उड़ान! अब 11 जून को भरेगा एक्सिओम-4 मिशन उड़ान, ISS रवाना होने से पहले शुभांशु शुक्ला ने पूरी की आखिरी रिहर्सल

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Shubhanshu Shukla Axiom Mission 4: पूर्व अंतरिक्ष यात्री निकोल स्टॉट ने बताया कि अंतरिक्ष में ग्रेवी वाला खाना खाना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि जैसे ही डिब्बा खोला जाता है, खाना इधर-उधर तैरने लगता है। इसलिए अंतरिक्ष यात्री बहुत संभलकर खाते हैं। वे पूरे दिन काम करने के बाद रात में खाना खाते हैं। (Shubhanshu Shukla Axiom Mission 4) खाना आमतौर पर पैकेट में बंद होता है, जो कैंपिंग या मिलिट्री राशन जैसा होता है, पोषक और सेहतमंद। अगर कोई अंतरिक्ष यात्री लंबा समय स्पेस स्टेशन पर बिताता है, तो उसका परिवार भी खास मिशन के जरिए उसके लिए खास खाना भेज सकता है।

Shubhanshu Shukla Axiom Mission 4: मिशन में बाकी अंतरिक्ष यात्री कौन हैं?

स्लावोज़ उज़्नान्स्की पोलैंड के दूसरे अंतरिक्ष यात्री हैं जो 1978 के बाद स्पेस में जा रहे हैं। टिबोर कापू हंगरी के दूसरे अंतरिक्ष यात्री होंगे जो 1980 के बाद स्पेस में कदम रखेंगे। पैगी व्हिटसन अमेरिका की अनुभवी अंतरिक्ष यात्री हैं और यह उनका दूसरा प्राइवेट स्पेस मिशन है।

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क्या है एक्सिओम मिशन-4?

एक्सिओम-4 एक प्राइवेट अंतरिक्ष मिशन है जिसे अमेरिका की प्राइवेट कंपनी Axiom Space और NASA मिलकर कर रहे हैं। (Shubhanshu Shukla Axiom Mission 4) इस मिशन में अंतरिक्ष यात्री स्पेसX के फाल्कन-9 रॉकेट के ज़रिए लॉन्च होंगे। ये सभी ड्रैगन कैप्सूल में बैठकर अंतरिक्ष की यात्रा करेंगे। मिशन पूरी तरह से निजी है, लेकिन NASA का इसमें तकनीकी सहयोग है।

मिशन के उद्देश्य क्या हैं?

वैज्ञानिक प्रयोग: माइक्रोग्रैविटी में नए वैज्ञानिक परीक्षण करना।

नई तकनीकें: अंतरिक्ष में उन्नत तकनीकों की टेस्टिंग और प्रदर्शन करना।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अलग-अलग देशों के अंतरिक्ष यात्री मिलकर काम करेंगे, जिससे वैश्विक सहयोग बढ़ेगा।

शिक्षा और जागरूकता: इस मिशन के ज़रिए लोगों को स्पेस साइंस के प्रति प्रेरित किया जाएगा।

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ISS (इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन) क्या है?

ISS एक बहुत बड़ा अंतरिक्ष स्टेशन है जो पृथ्वी की कक्षा में लगातार घूमता रहता है।इसमें अंतरिक्ष यात्री रहते हैं और माइक्रोग्रैविटी में साइंटिफिक रिसर्च करते हैं।यह स्टेशन लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलता है। हर 90 मिनट में यह पृथ्वी का एक पूरा चक्कर लगाता है। पांच देशों की स्पेस एजेंसियों ने मिलकर इसे बनाया है। इसका पहला हिस्सा नवंबर 1998 में लॉन्च किया गया था।

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