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Milkipur by-election: हिंदुओं को एकजुट रखने की रणनीति रही कामयाब, पीडीए के बजाय बंटेंगे तो कटेंगे का नारा रहा प्रभावी

Published
4 महीना agoon
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News DeskMilkipur by-election: मिल्कीपुर का सियासी रण जीतने में भाजपा की रणनीति तो काम आई ही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की हिंदुओं को एकजुट करने की नीति ने भी बढ़त दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। (Milkipur by-election) संघ परिवार के साथ ही अखिल विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद समेत सभी वैचारिक संगठनों ने मिल्कीपुर उपचुनाव को जिताने में कोर कसर नहीं छोड़ी। भाजपा के साथ इन संगठनों ने भी पीडीए के फार्मूले का भ्रम तोड़ने के लिए जमीन पर काम किया।
सूत्रों की माने तो कुंदरकी और कटेहरी जैसा विषम जातीय समीकरण वाला चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने संघ परिवार के सुझाव पर मिल्कीपुर के लिए रणनीति बदलकर तैयारी शुरू की थी। (Milkipur by-election) दरअसल, कुंदरकी और कटेहरी सीट पर तीन दशक बाद कमल खिलने के बाद पार्टी और संघ ने जीत के कारणों की पड़ताल शुरू की।
संघ ने पड़ताल के बाद निचोड़ निकाला कि सीएम योगी आदित्यनाथ के ”बंटोगे तो कटोगे” के नारे का विभिन्न जातियों में बंटे हिंदुओं पर बड़ा असर पड़ रहा है। (Milkipur by-election) नारे का ही असर रहा कि कटेहरी और कुंदरकी में भी तीन दशक बाद कमल चटख रंग के साथ खिला। संघ ने इसी आधार पर भाजपा के साथ मिलकर मिल्कीपुर का रण जीतने की रणनीति बनाई। इसके तहत संघ कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर हिंदू एकता पर जोर दिया। इस अभियान ने बाजी पलटने में बड़ी भूमिका निभाई है।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में मनाए दीपोत्सव पर मिल्कीपुर की जीत की रणनीति तैयार कर ली थी। लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी सीएम ने राममंदिर निर्माण में रोड़ा अटकाने, कारसेवकों पर गोलियां चलवाने और मुस्लिमों के ध्रुवीकरण के लिए सपा नेताओं के रामलला के दर्शन से दूरी बनाने का मुद्दा उठाया, जो हिंदू समाज को एकजुट करने में मददगार रहा।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एपी तिवारी कहते हैं कि सपा ने फैजाबाद लोकसभा सीट पर जीत के गलत मायने निकाले। उसने भाजपा प्रत्याशी के प्रति फैली नाराजगी मानने के बजाय हिंदुत्व की राजनीति का पटाक्षेप मान लिया। यहीं सपा चूक कर गई।
Milkipur by-election: सपा के हिंदुत्व विरोध का भी मिला फायदा
सपा का हिंदुत्व विरोध भी पिछड़ों-दलितों को भाजपा के पक्ष में एकजुट करने में मददगार रहा। सपा नेतृत्व का मानना था कि हिंदुत्व का विरोध उन्हें मुस्लिमों के बीच नायक बना देगा। (Milkipur by-election) वह भूल गए कि हिंदुत्व के एजेंडे पर भाजपा अब 90 के दशक से ज्यादा मुखर है। यही नहीं, उनके पास इस मुद्दे पर गिनाने को भी बहुत कुछ है। यही वजह है कि सपा को अवधेश के जरिये हिंदुत्व की राजनीति ध्वस्त करने की कोशिश महंगी पड़ी।
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